समाज का कड़वा सच-7
चिता से उड़ती चिंगारियों को,, मिला न आसरा हवाओं का,, जिंदगी गुजारी जिनके खातिर,, क्या किस्सा सुनाएं उनकी वफाओं का,, दर्द बयां करें यदि मौत का,, तो जमीं क्या फट जाएगा आसमां,, जिन की खातिर जीवन त्याग,, आखिर इतनी जल्दी कैसे दूरी बनी दरमियां,, किन से करें शिकायत,, जो रह-रहकर खाए झूठी कसम,, लगता नहीं मातम हैं यहाँ,, लगे जैसे वह मना रहे हैं,, मौत का जशन
मैं न जाने किस अतीत की दुनिया में खो गया, ऐसा लग रहा था, मानो आज भी वही भीरू कैलाश की दुकान खुलवाने और उसे सही रास्ता दिखाने के खातिर ना जाने क्यों किसी सगे से भी ज्यादा इस तरह मदद कर रहा था, जैसे कैलाश से उसका पिछले जन्म का कोई पुराना नाता हो। आखिर कैलाश से मिले हुए उसे भी हुए ही कितने घंटे थे, और भला वह भी क्या सोच कर आया था कि नौकरी करने,और उसे देखते ही देखते भीरूने एक दुकान का मालिक बना दिया , और तो और सारी थकावट भूल वह सभी श्रमिकों को ना जाने कितने ही उत्तम विचार और फायदे बताकर दुकान में लगातार आने हेतु प्रेरित कर रहा था।
एक पल के लिए तो उसने श्रमिक नेताओं को भी अपनी ओर मिला लिया कि कल में कोई आगे चलकर कोई परेशानी खड़ी ना करें, और कैलाश को बराबर उन नेताओं को समय-समय पर चाय ऑफर करना और उनका चाय पिलाने के बहाने धीरे-धीरे ऑफिस में भी चाय सप्लाई करने, और पैसे कमाने का तरीका वह सब कुछ मात्र एक दिन में ही सीख गया।
देखते ही देखते मात्र एक दिन में उसने उस समय लगभग पूरे चार सौ रूपये की कमाई कर ली ,और कैलाश के हाथ में वह पैसे थमाते हुए वह बड़े गर्व से बोला, अब कोई चिंता नहीं सुकून से दुकान चलाओ और पैसा कमाओ......... बस याद रखना कोई भी गरीब दिखे तो उसकी ऐसे ही मदद करना, और हां सुन जब तक भीरु है चिंता नहीं करना....आज से तुम मेरे छोटे भाई की तरह जब भी कोई परेशानी हो, बेझिझक बोल देना कहते हुए बड़े नेता से उसे सिफारिश के तौर पर खदान के पास ही एक छोटा सा कमरा जो बेकार पड़ा था रहने के लिए भी दिलवा दिया।
कैलाश के लिए तो साक्षात भगवान ही उतर आए थे, वह भीरूके चरणों में झुकने लगा कि तभी उसे उठाकर उसने सीने से लगाया, और बस इतना कहा कि जो मैं ना मिलूं तो इनको कहना, इनमें और मुझमें कोई फर्क नहीं हैं ....
समझ ले कि हम दो सगे भाइयों की तरह है, अब तू हमारा छोटा भाई हो गया......कहकर भीरू ने जब मेरी ओर इशारा किया तो मेरा सीना भी गर्व से फूला ना समाया.....
मैं सोच में डूबा हुआ था कि, तभी कैलाश के रोने की आवाज सुनाई दी और अचानक मेरा ध्यान भंग हुआ। मैं अपने आप में ऐसा डूबा था कि उस को शांत करवाना ही भूल गया।
मैंने उसे समझाते हुए कहा कि वह खुद जाकर यह पैसे उसके परिवार को दे आये, उसने तुरंत मुझे रोकते हुए कहा नहीं साहब उन्होंने मुझे सख्त हिदायत देकर कहा था कि यह पैसे मैं सिर्फ आपको ही दु....... जिसका उपयोग आप उनकी दसक्रिया में गरीबों को खाना खिला और बाकी कार्यों को पूरा करने में लगा देना ....
मेरी आंखों में पानी आ गया और अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया, मेरा मित्र सब जानता था, इसलिए और अगर कैलाश मैं अगर उस दिन मर जाता....... तब कैलाश हाथ जोड़कर खड़ा हुआ और बोला मत कहिए साहब जो हुआ क्या वही कम बुरा है, हिम्मत रखिए और आगे हो सके तो उस परिवार को सही रास्ते पर बनाए रखें, क्योंकि जैसे कभी-कभी वह बताया करते थे, उनके रिश्तेदार कुछ ठीक नहीं है। मैंने बीच में ही कैलाश को टोकते हुए कहा अच्छा ठीक..... कितने हैं?????उसने तुरंत कहा..... यूं ही कुछ एक लाख अस्सी हजार है।
अब यह आप के हवाले हैं, मेरी तरफ से प्रणाम स्वीकार करें और ठीक उनकी ही तरह छोटे भाई का स्नेह बनाए रखें, कहकर मेरे चरणों में झुकने लगा, उसकी आंखें भरी हुई थी, और मैं भाव विवहल मैंने उसे उठाकर सीने से लगाया और सिर्फ इतना कहा की चिंता मत कर मैं हूं ना और इतना कहते हुए मेरा गला रूंध सा गया, और मेरी स्थिति देखते हुए वह तुरंत वहां से वापस हो गया।
मैं हाथ में वह पैकेट लिए वही कुर्सी पर बैठ गया, लेकिन कैलाश को रोते हुए जाता देख श्रीमती जी ने ऊपर आकर कारण जानना चाहा पर मैंने सिर्फ उनके हाथ में पैसे देकर संभाल कर रखने का इशारा किया, और वह भी मेरी परिस्थिति से भलीभांति अवगत होने के कारण मुझे एकांतवास दे चली गई .........
क्रमशः.....................